IUCAA - VYOM - Hindi Pakhwada 2023

{h§Xr nIdm‹Sm amO^mfm àH$moð 2023 07 िन य ही इस सचना से शकराचाय उ िव ान क िव ा ूं से भािवत हए ह गे। पर पाठक यह भी समझगे िक वह िव ान िकस कार िश ा दतेा होगा, य िक उसके पालत प ी भी दाशिनक चचा ू ही करते थे। इससे प होता ह ैिक िचिड़य ने सारे श द मडन िम के ं छा से सीख ेह गे। तोते जैसे प ी बार-बार सने श द आसानी से ु दोहरा लेते ह। से प म यह कहा जा सकता ह ैिक मडन िम क ंं रटनेवाली िश ा उनके पालत पि य तकभी जा पहची थी। ूं सम या का एक पहल यह भी था िक सीखने व िसखाने का ू तरीका ाचीन व म य यग जैसा ही था। हम अकसर गव के साथ कहते ु ह िक हमारे वेद अपौ षये ह। इसका अथ यह ह ैिक इस कार के ान- थ क रचना मन य ारा नह क जा सकती ह।ै ये थ हमारे यहाँ ंुं पीढ़ी-दर-पीढ़ी मौिखक प से रटाए जाते रह।े िश क उ ह रटकर सीखता था और िफर अपने िव ालय म अपने िव ािथय को रटवाता था। िन य ही रटनेवाली िश ा उस समय चलन म थी और यह उस अव था म आव यक व उपयोगी थी जब परपरागत ान ं अगली पीढ़ी को िदया जाए; पर यह ान के िवकास व उसक समि ृ रटत िश ां इस कार क िश ा के बारे म एक िविश कथा ह।ै आिद शकराचाय जगह-जगह मण करके िविभ न िवषय के िश क एव ं दाशिनक के साथ शा ाथ कर रह ेथे। तभी उ ह बताया गया िक यिद वे अपने िवचार का चार करना चाहते ह तो उ ह िस िव ान मडन ्ं िम के साथ शा ाथ करना चािहए। अत: शकराचाय मडन िम क ंं नगरी जा पहच ेऔर उनका घर ढढ़ने लगे। वह पर कछ मिहलाए ँएक ंूंु तालाब पर कपड़े धो रही थ । उनके पास जाकर शकराचाय ने उ ं िव ान का पता पछा तो का या मक उ र िमला, " जहाँ पर पालत ूू िचिड़याँ िपजरे म बैठी ार के सम चचा कर रही ह िक यह ससार ंं न र ह ैया नह , वही घर मडन िम का ह।ै”ं कैसे भावी बनाया जाए या नए उपकरण ारा महल म नवीन सिवधा ु आिद कैसे िवकिसत क जाए-का हल िनकाल। यही नह , जब अे ज ं आ गए और वे ारभ म शि शाली नह थे तब भी उनसे हिथयार ं खरीद ेजाते रह ेऔर भारतीय शासक आपसी य म उनका योग ु करते थे। िकसी के भी मि त क म अपने यहाँ इस े म अनसधान व ुं िवकास करने, उन हिथयार जैसे हिथयार बनाने या उनम सधार करने ु क बात नह आई। यह परपरा रही ह ैिक हम अपने अतीत क शसा करते रह ंं और शषे िव क तलना म अपने िवचार व कम को े बताए।ँ पर ु वा तिवकता हमारे सामिहकअह को ि य नह लगती ह।ै यिद पाठक ूं को लगता ह ैिक उपय िट पिणयाँ कड़वी ह, तो वे वयआ मिचतन ुंं करके यह जानने का यास कर िक दसरी सह ा दी म िव ान ने गित ू य नह क ? रटनेऔर उसे दोहराने पर यादा जोर दनेेऔर नई खोज या नए मौिलक िचतन पर जोर न दनेे के कारण िलिखत पाडिलिप तैयार ंंु करने क परपरा भी कमज़ोर पड़ गई। यह स य प त: तब सामने ं आया, जब कछ भारतीय ने कछ वष पव भारतीय ाचीन ुुू खगोलिव ान के बारे म जानकारी ा करने क प रयोजना ारभक । ं इसके बारे म जानकारी अगलेअ याय म दी गई ह।ै (उपरो आलेख ो. जयत िव ण नाल कर ारा िलिखत ंु "भारतक िव ान या ा" प तकसे िलया गया है।)ु के िलए उपय नह थी। यिद ान म वि न हो तो यह जड़ हो जाता ह ैृु और अ ासिगक भी बन जाता ह।ै उदाहरण के िलए, हम दखे चके ह ंु िक वैिदक ान सभी के ारा वीकार िकया जाने वाला प नह ह।ै िविभ न लोग इसका िविभ न अथ िनकालते ह। कछ लोग ु अिनि तता का लाभ उठाकर यह भी दावा करते ह िक आधिनक ु िव ान ने जो कछभी उपलि ध ा क याआगे ा करना चाहता ह,ै ु वह वैिदक िव ान पहलेही ा कर चके थे।्ु परत समझने के बजाय रटने क ि या अपनाने से िव ान ंु क गित क गई। िव ान क गित के िलए उपल ध ान के सहारे आगे बढ़ना होता ह ैऔर इसके िलए नवीन िस ात व योग का ं सहारा लेना होता ह।ै यिद जो ह ैउसे ही पढ़ाया और यवहार म लाया जाएगा, तो नए ान के िलए गजाइशकहाँ बचगेी। यह दभा य ही ह ैिक ंुु आज भी िश ण यव था म रटकर पढ़ने को मह व िदया जाता ह।ै आजके िव ालय म िवषय को अ छी तरह से समझने के बजाय याद करनेऔर सही उ र दनेे पर ही जोर िदया जाता ह।ै

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