IUCAA - VYOM - Hindi Pakhwada 2023

06 वह मा अन पादक दशन बनकर रह जाता ह।ै यह भी एक कारण था ु िक भारत म िव ान आरिभक अव था से आगे नह बढ़ पाया। आज ं भी यिद हम मौिलक िव ान के े म काय- णाली का अ ययन कर तो पाएगँे िक िस ात पर योग क अपे ा अिधक जोर िदया जाता ं ह।ै यावसाियकमनोवि का अभावृ अब तक हमने भारतीय क सोच क वि का िवे षण ृ िकया। मान लीिजए िक एक टेिनस मचै हो रहा ह,ै िजसम बराबरी क ट कर के दो िखलाड़ी भाग ले रह ेह। एक क मनोवि आ मक ह ैृ और वह लाइन मनै के फैसल पर आपि करता ह,ै अपायर से ं िशकायत करता ह ैऔर कभी-कभार ही शात रहता ह।ै दसरा साध ंुू वि का ह ैऔर कभी लाइन मनै के फैसले पर सवाल नह करताऔर ृ न ही अपायर से ही िशकायत करता ह।ै वह अपना शात वभाव बनाए ंं रखता ह।ै वह इतना भ प ष ह ैिक उसे लगता ह ैिक उसका िवप ी ु यिद लाइन मनै के गलत फैसलेके कारणअकखो बैठा ह ैतो वह जान-ं बझकर अगला अक खो बैठता ह।ै भीड़ समझती ह ैिक पहला बरा ूंु आदमी ह-ैऔर कई मौक पर हट भी करती ह,ै जबिक दसरे को अ छा ू यि होने के कारण उसे शसा का पा बनाती ह।ै िदन केअत म पता ंं चलता ह,ै जो बरा आदमी माना जा रहा था वह जीत गया और उसका ु नाम रकॉड क िकताब म चला गया, जबिक जो अ छा यि माना जा रहा था, उसे भला िदया गया। ऐसा य हआ? यहाँ मनोवि ृु इस सदभ म भारतीय इितहास के दो सग का उ लेख ंं करना मह वपण होगा। अठारहव शता दी म पेशवा नाम से जाने वाले ू मराठा शासक म से एक कशल शासक थे- नाना फड़नवीस। वह ु वाराणसी के नजदीक कमनाशा नदी पर पल बनवाना चाहते थे; पर ु भारतीय पल िनमाताओके यास एक के बाद एक िवफल हो रह ेथे; ुं य िक पल के खभ ेखड़े होने से पहले ही धसँने लगते थे। उस ुं प रयोजना के भारी ने द आ माओ क शाित के िलए धािमक ंंु अन ान ारभ कराया; पर उससे कोई लाभ नह हआ। जब नाना को ुं पता चला तो उ ह ने अन ान बद करवाकर अे ज इजीिनयर बेकर को ुंंं आमि त िकया, िजसने पानी पप करने के िलए मशीनरी मगँाई। उसके ंं बाद खभ क मजबत न व तैयार क और काम परा करवा िदया। इसके ंूू अलावा उ नीसव शता दी म रोना ड रॉस नामक अे ज ने मले रया ं के कोप और सार क सम या का सामना िकया। हालाँिक इस रोग क जानकारी भारतीय को सिदय से थी, लेिकन हम अपनी सम याओको हलकरनेके िलए बाहरी लोग को बलाना पड़ता था।ंु मह वपण ह।ै यावसाियक मनोवि वाले के िलए यह मह वपण होता ृूू ह ैिक पहले जीता जाए, चाह ेइसके िलए अ छे यवहार को य न छोड़ना पड़े। दसरी ओर, अ छा यि िसफ खलेना चाहता ह,ै चाह ेू प रणामकछभी य न हो।ु उपय उदाहरण का उे य भगव ीता म विणत िन काम ु कमयोग का अनादर करना नह ह।ै यह जीवन का स य विणत करने के िलए िदया जा रहा ह।ै आज के ित पधा के माहौल म यावसाियक मनोवि ही लाभदायक िस होती ह ैऔर यि को प रणाम तक ले ृ जाती ह।ै वा तव म गीता म भगवान ीक ण ने अजन को एक कशल ्ृुु एव कमठ यो ा क तरह य करने क ेरणा दी, मा एक भ प ष ंुु क तरह यवहार करनेक नह । िव ान म यावसाियक मनोवि आव यक ह।ै कित म ृृ िनिहत रह य को आराम से बैठकर नह तलाशा जा सकता ह।ै यटन ू इसिलए सफल हआ, य िक वह परी तरह यावसाियक था। हालाँिक ू वह अपने े म अकेला था , पर वह अपनी ाथिमकताओ पर परा ंू यान दतेा थाऔर िकए गए काम का ये लेने म कभी नह चकता था। ू यही नह , वह िविभ न सम याओ का हल िनकालते समय उनक ं पणता और श ता का भी परा यान रखता था। वह अपने पड़ोिसय ूुू एव वै ािनक सहयोिगय के बीच बहत ही कम लोकि य था, पर जब ं उसने प रणाम िदए तो उसेस मान िमला। आिद शकराचाय नौव शता दी म इतने यावसाियक थे ं िक उ ह ने इस मनोवि का वैिदक धम के चार म भरपर उपयोग ृू िकया। वे अपने िवपि य , जो उस समय बौ धम से भािवत थे, से लगातार शा ाथ करते रह,े उ ह ने परे भारतवष का मण िकया। ू आज उ ह िहद धम का उ ारक माना जाता ह।ै उनक सोच क र नह ंू थी, पर वह चचा करने और िवप ी के साथ तक करने म परी तरह से ू म तैद थे तथा वह तब तकलगे रहते थे जब तक िवप ी उनक बात से ु सहमत न हो जाता या शा ाथ म हार वीकार नकर लेता। पर ाचीन भारतीय वै ािनक प र य म इस कार क यो यतावाले यि मौजद नह थे। जो ऐसे त य , जैसे िविभ न ह ू अपने िनि त पथ य घमते ह तथा ऊ वाधर िदशा से कोण बनाता ू हआऊपर फका गया ेपक एक व ाकार पथ का अनसरण करने ु के बाद नीच ेय आ िगरता ह,ै क आगे पड़तालकर पाते। त कालीन शासक या बि जीिवय क ओर से ऐसे लोग को कोई ो साहन ु नह िमलता था, जो सासा रक सम याओ, जैसे नए अ -श को ंं {h§Xr nIdm‹Sm amO^mfm àH$moð 2023

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