IUCAA - VYOM - Hindi Pakhwada 2023

04 आयभट से भा कर (पाँचव से बारहव शता दी तक) के यग म भारतीय िव ान अरब दशे एव यरोपआिद के िव ान के तर से ुंू बहत आगे था। अल-ब नी जैसे िव ान ने भारत आकर स कत ृं सीखी, तािक वह ग तथा अ य िव ान क कितय का अरबी ृु भाषा म अनवाद कर सक। अधकार यग म यरोप के पास इसके ुंुू समक कछ भी नह था, पर भारत म िव ान क गित आिखर य ु बनी न रह सक ? अ दस सलाम ने इस सदभ म एक रखा था। स हव ंु शता दी म आगरा म ताजमहल का िनमाण हआ था और उसी अविध म यरोप म सट पॉल चच का भी िनमाण हआ था। दोन ू वा तकला केअ त नमने हऔर यह दशाते थे िक उस समय िविभ न ुूूे म यह िवषय िकतनी उ नित पर था। पर कछ ही दशक म सर ु आइजक यटन क खोज ने इ लड म िव ान क गित का माग ूं श त िकया। लेिकन भारत म ऐसा कछ य नह हआ?ु िव ानको सर णका अभावं यिद हम ताजमहल के उस वा तिवद के दभा य को याद ु्ु कर तो पाएगँे िक उसके बारे म बहत कम जानकारी उपल ध ह।ै हालाँिक यह माना जाता ह ैिक वह फारस से भारत आया था। त कालीन कहािनय से पता चलता ह ैिक बादशाह शाहजहाँ ने उसके दोन हाथ कटवा िदए थे, तािक वह ऐसी खबसरत इमारत कह और न ूू बना सके। पर सट पॉलचचके वा तिवद ि टोफर रेन को ऐसे दभा य ु्ु का सामना नह करना पड़ा। शाहजहाँ क मनोवि वाथ थीऔर वह ृ चाहता था िक उसका मकबरा अनठा हो। से प म यह कहा जा सकता ूं ह ैिक हालाँिक उसक इ छा वा तकला के अनोख ेनमने को बनाए ुू रखने क थी; पर उसक उ म मनोवि नह थी और यह सजना मक ृृु कला को बढ़ावा दनेेके बजाय उसकेअहको बढ़ावा दतेी थी। ं {h§Xr nIdm‹Sm amO^mfm àH$moð 2023 आ मति और कममाँग ु िव ान को सर ण दनेे के मामले म भारत व यरोप के ंू कलीन वग म अतर प िदखाई दतेा ह।ै यरोप म पाँचव से स हव ुंू शता दी तक कछ कलीन लोग ने िव ान को कला क तज पर ही ुु सर ण िदया। इस सहायता के कारण कछ उभरते हए वै ािनक ने ंु योगशालाओ और वेधशालाओ क थापना क । राजा ेड रक ंं ि तीय ने टायको ाह(े 1546-1601) के िलए यरानीबोग म एक ू वेधशाला थािपत क । यह डेनमाकके एक ीप ीन पर थी। राजा लई ु चौदहव ने इसी उे य के िलए सन 1672 म एक अकादमी क ् थापना क , जो ासीसी रा य के अतगत लगातार काम करती रही। ंं से प म कह तो इस सर ण के कारण िव ान को समाज म एक थान ंं िमल सका। हालाँिक हम याद रखना चािहए िक यह बस औ ोिगक ाित से बहत समय पव हआऔर उस समय िव ान को सहारा दनेे से ंू कोई प लाभ होनेका कोई सकेत उलप ध नह था। ं सर ण का अभाव ही भारत के वै ािनक यास क कमी ं का एकमा कारण नह ह।ै यरोप क जलवाय कठोर थी और वहाँ ूु भयकर ठड म जान बचाने के िलए िवशषे यास करने होते थे। ऐसी ंं भारत म ि थित यरोप के तज पर नह रही। भारत म कला, ू सािह य और सगीत को राजसी या कलीन त का सर ण उपल ध ंुंं था। पर िव ान क बढ़ती ताकत का आभास िकसी को नह था। ाचीनकाल से ही कािलदास जैसे किव राजसी सर ण के कारण ं फलते-फलते रह।े त प ात मगलकाल म स ाट अकबर के दरबार म ू्ु महान सगीतकार तानसेन गव का पा बने रह।े राजपत व अ य ्ूं मसिलम राजाओके दरबार म कलाकार को बड़े पैमाने पर सर ण व ुंं स मान िमलता रहा, पर िकसी वै ािनकको राजसी सर ण िमलने का ं कोई भी उदाहरण उपल ध नह ह।ै आ खर ा थी जसने रोक दसूरी सह ा ी म भारतीय व ान क ग त? - ो. जयत नाल करं आलेख

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